बातों के लच्छे तो हम भी बनाते हैं |
कोई यकीन करे न करे |
ऐसी तो कोई बात नहीं बताते हैं |
हर सपने सच होते हैं |
उसमे हकीकत की मिठास होनी चाहिये |
है जूनून अगर तेरे इरादों में
फिर मंजिल कहाँ दूर तेरे हाथों से |
सपनो में महल तो हम भी बनाते हैं |
बातों के तो लच्छे हम भी बनाते हैं |
जो संघर्षों से नहीं खबराते ।
वो ही नयी राहें बनाते ।
तुम क्यों बैठे हो हताष ।
उठो जागो और फिर करो प्रयास ।
जिंदगी की परिभाषा अपनी है सिखाने की ।
तुम्हारी हर कोशिश है उसे जगाने की।
जिसको गिर के उठना आता है ।
सफलता भी आलिंगन उसका करती है ।
सपनो में महल तो हम भी बनाते हैं |
बातों के तो लच्छे हम भी बनाते हैं |
(लेखक - धीरेंद्र सिंह)
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