बुढ़ापा, जीवन का अटल सत्य जिसे स्वीकारना आसान नहीं होता और लोग भी इसे स्वीकार नहीं पाते हैं की अब वो जीवन के आखरी चरण में पहुँच गए हैं । जीवन कब इस मोड़ पर ले आया, उन्हें इसका पता ही नहीं चलता, जीवन भी बहुत विचित्र होता है, जब छोटे होते हैं तब बड़ा होना चाहते हैं, बड़े होते हैं तो बचपन को ढूंढते हैं पर जीवन की यह यात्रा है जिसमें कुछ खट्टे मीठे अनुभव हैं |
लेकिन एक प्रश्न है कि आखिर बुढ़ापा है क्या ? उम्र का ढलना या जीवन से थकना या फिर अपने को निष्क्रिय करना बुढ़ापा है | जीवन एक यात्रा है जिसके अपने पड़ाव हैं, बचपन, जवानी और वृद्ध अवस्था | बचपन बहुत सुहाना, खूबसूरत और चंचल होता है, इस अवस्था में हमे अपने बड़ों का सरक्षण प्राप्त होता है जैसे माता-पिता, दादा-दादी और बहुत सारे रिश्ते | यह वो समय होता है जब हमारी सारी गलतियाँ माफ़ होती हैं, हम कुछ भी करें वो हमारा बचपना ही समझा जाता है, कोई फिकर, कोई चिंता नहीं होती | लेकिन कहते हैं ना बचपन में बड़े होने की जल्दी हमे बहुत कुछ अच्छे समय का आनंद ही नहीं लेने देती और हम वो करने लगते हैं जैसा बड़े करते हैं | आजकल तो यह आप हर घर में देख सकते हैं - हर बच्चे के हाथ में मोबाइल है और वास्तविक खेल छोड़ घंटों उसमे आंख लगाए बैठे रहते हैं जिससे उनमें कई तरह की बीमारियां जन्म ले रही हैं लेकिन माँ बाप चिंता तो करते हैं पर ऐसा बच्चे क्यों करते हैं यह नहीं समझना चाहते | बच्चे कुछ अलग नहीं करते बच्चे वो ही करते हैं जैसा वो अपने बड़ों को देखते हैं, हम अपने बच्चों के साथ समय बिताना भूल गए हैं, हम घंटो फ़ोन में, ऐसे ही समय बर्बाद कर देते हैं पर परिवार की लिए और अपने बच्चों के लिए समय नहीं निकाल ते क्यों, सोचियेगा |
जवानी के अपने ही रंग और इसकी अपनी ही उड़ान है, यह वो समय होता है जब सारा संसार फहतेय करने का जुनून होता है किसी बात का डर नहीं, नयी राहों पर चलने का अपना ही मज़ा होता है | पर यह वो समय भी होता है जब व्यक्ति परिवार बनाता है, जिम्मेदारियों को समझता है और अपने बच्चों को दुनियाँ की सब खुशियाँ देना चाहता है । जवानी की अपनी ही कहानीयाँ होती हैं, इस समय व्यक्ति बहुत ही अज़ीब तरह के अनुभव से गुजरता है, कभी गिरता है, कभी सम्भलता है पर जो भी करता है बड़े उत्साह से करता है क्योंकि वो कुछ बनना, कुछ पाना चाहता है । लेकिन इन्हीं ज़िम्मेदारियों में वो कहीं खो जाता है, बहुत कुछ छूटता चला जाता है और समय पंख लगाये उड़ जाता है ।
अब वो जिंदगी के उस चरण में आ जाता है जिसकी वो कभी कल्पना भी नहीं करता पर उसके चारों तरफ का वातावरण उसको एहसास कराता है कि अब वो बृद्ध हो गया है । बृद्ध, ऐसा व्यक्ति, जिसके पास अपने और अपने से जुड़े लोगों की बहुत सारी कहानियाँ और किस्से होते हैं, जीवन का अनुभव होता है | जिसका लाभ छोटे बड़े सब उठाते हैं - बच्चे अपने दादा जी और दादी जी से प्रेरणा और संस्कार पाते हैं और बुजुर्गों को भी बच्चों का साथ समय बड़ा अच्छा लगता है | लेकिन यह जीवन का ऐसा चरण है जब व्यक्ति फिर से वहाँ या उस स्थिति में पहुँच जाता है जब उसे अपनों के साथ की बहुत आवश्कता होती है | लेकिन देखा जाए तो यह जीवन का वो समय भी है जब आप वो सब कर सकते हो जो आप करना चाहते थे और किसी न किसी कारण नहीं कर पाये, हाँ यह जरूर है की अब शरीर में पहले जैसी स्फूर्ति नहीं है, कुछ बिमारियों ने भी घेर लिया है पर कहते हैं न - जहाँ चाह वहाँ राह |
आज हमारे समाज ऐसे कितने बुजुर्गों के उदहारण सामने हैं जिन्होंने यह साबित किया है, उम्र सिर्फ एक संख्या है और कुछ नहीं, किसी को बॉडी बिल्डिंग में शौक था तो उन्होंने उम्र के इस पड़ाव पर अपना वो सपना पूरा किया और एडवरटाइजिंग की दुनिया में अपना नाम बनाया, किसीने अपना स्टार्टअप शुरु किया और अपने को दुनिया का सफलतम बिज़नेस मैन बना दिया |
जो बुजुर्ग जीवन के इस पड़ाव को अपना सेवा निर्वित्त मान कर अपने को निष्क्रिय बना लेते हैं, धीरे-धीरे उनके जीवन से जीवन जीने की उत्सुकता खत्म होने लगती है और वो और तेजी से बूढ़े होने लगते हैं | यह जीवन जब तक है तब तक जीवन की हर साँस तक कर्म करना होगा उससे आप नहीं बच सकते, मैं मानता हूँ बहुत से बुजुर्ग बहुत कुछ करना चाहते हैं पर उनका शरीर, परिवार और सबसे बड़ी बिमारी कि - क्या कहेंगे लोग से अपने को बहार नहीं ला पाते, पर उनको यह सोचना चाहिए की जब उन्होंने अपनी सारी जिम्मेदारियाँ पूरी कर दी तो अब ऐसा क्या जो वो करना चाहते थे और नहीं कर पाये |जिंदगी बहुत छोटी है खुआब पूरा करने के लिये और बहुत बड़ी है बस जीने के लिये।
आँखों पर चश्मा चेहरे पर झुर्रियाँ |
लिया जीवन का अनुभव ||
कितने किस्से कितनी कहानियाँ ।
इस उम्र में मेरी समाय |
भूल जाता हूँ अब ।
पर बीते लम्हें कहाँ भूलते हैं||
खट्टे मीठे अनुभवों का जीवन ।
क्या जवानी क्या बुढ़ापा |।
कर्म के बंधन हैं
पूरे होंगे सांस आखरी पर ||
(लेखक - धीरेन्द्र सिंह )
बहुत सही लिखा है आपने।
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