जीवन कैसा हो ? यह एक ऐसा सवाल है जो हर कोई कभी न कभी अपने आप से पूछता जरूर है । किन्तु आपको उसका सही उत्तर मिले कोई जरूरी नहीं, कारण बहुत हैं । यह जीवन आपका है, उसकी यात्रा आपकी है और इस उत्तर को अगर आप दूसरों से पूछोगे तो वो अपने जीवन के अनुभव या जो इन्होंने पड़ा या सुना है इसके आधार पर ही बताएंगे । मैं यह नहीं कह रहा की आप किसी की मत सुनो, लेकिन आपका जीवन कैसा हो इसका निर्णय आपको ही करना है ।
लोग कहते हैं हमे आदर्शवादी होना चाहिए, क्रोध, लोभ, मोह और ईर्ष्या से दूर रहना चाहिए, किन्तु यह ही सब तो हमे मनुष्य बनाते हैं । हाँ यह जरूर है कि अति सबकि घातक होती है, अधिक क्रोध जीवन बिगाड़ देता है और अधिक मोह,लोभ जीवन में चिंता फिक्र और असंतोष को बड़ा देता है। हमे एक आदर्श जीवन के लिए उसमे संतुलन लाना होगा ।
हमारे ग्रन्थ हमे बहुत कुछ बताते और सिखाते हैं । हमें चाहें कृष्ण के जैसा होना चाहिए या फिर राम के जैसा या फिर किसी भी ऐसे इंसान के जैसा जिसे हम अपना आदर्श मानते हों फिर भी चुनाव और समझ हमारी ही है, इसलिए हमारे स्वयं के अनुभव ही हमारे व्यक्तित्व का स्वरुप निर्धारित करते हैं । समय गतिमान है और बदलाब हर क्षड़ हैं आपका विवेक ही आपके जीवन का आधार है ।
इस बात को हम गौतम बुद्ध जी के जीवन की एक घटना से समझते हैं की जब गौतम बुद्ध जी ने घर छोड़ा "सत्य" की तलाश में तो उन्हें नहीं मालूम था की वो कैसे और किस साधना से उसकी खोज करें | वो बहुत लोगों से मिले उनसे समझना चाहा की सत्य क्या है | जिसका जैसा अनुभव था उसने सत्य का वैसा वर्णन किया, किसीने कहा अरे सत्य तो तपस्या से मिलेगा, तब उन्होंने बहुत दिनों तक तप क्या फिर भी सफलता नहीं मिली, फिर उन्होंने वेदों को, शास्त्रों को जानने वाले ऋषियों से पुछा, उन्होंने कहा तप के साथ व्रत अर्थात अन्न का त्याग करो फिर तुम्हे सत्य की प्राप्ति होगी | बुद्ध ने बहुत दिनों तक ऐसा भी क्या, दिन पर दिन वो इतने कमजोर हो गये की ठीक से चल भी नहीं पाते थे फिर भी उन्हें सत्य का साक्षात्कार नहीं हुआ और वह बहुत अधिक निराश हुए |
एक दिन इस निराश अवस्था में, नदी के किनारे जा बैठ गए | वह बहुत गहरी सोच में नदी को देख रहे थे की अचानक उनकी नज़र एक बहते हुए पत्ते पर पड़ी जिसमे एक चींटी थी जो बार बार पानी में गिरती और फिर उस पत्ते पर चढ़ जाती, नदी का बहाव बार-बार पत्ते से चीटीं को पानी में गिरा देता, पानी की अधिकता से पत्ता भी डूबने लगता, इस घटना को देख बुद्ध की चेतना लौट आयी और उन्होंने जीवन के सबसे जटिल रहस्य को उस दिन सुलझा लिया - की जीवन कैसा होना चाहिए ? उन्होंने जीवन के संतुलन के नियम को समझ लिया था - पत्ते पर अधिक पानी से पत्ता डूबने लगता और पानी के हट्टेते ही तैरने लगता फिर उन्होंने चीटीं को पानी से बहार निकाल दिया जिससे उसकी जान बच गयी | जीवन में संतुलन होना चाहिए, अधिकता या कमी किसी भी चीज़ की - अपना बिपरीत असर जीवन पर डालती है | पर यह सत्य बुद्ध को उनके अनुभवों से आया और फिर उनके कठिन प्रयासों से और उनकी साधना से उनको सत्य का साक्षात्कार भी हुआ, जिसने उन्हें भगवान् गौतम बुद्ध बनाया |
जीवन एक यात्रा है और हमे उसका आनंद लेना चाहिए, जीवन में सुख भी आयेंगे और दुःख भी और यही अनुभव हमारे जीवन को, हमारी यात्रा को सुन्दर भी बनाएंगे बस एक ही शर्त है की इस यात्रा में हम अपने विवेक से काम लें, गिर भी जाएँ तो उसका अनुभव लें और आगे बड़े और निरंतर बड़ते रहें |
हो कुछ जीवन ऐसा किसी के काम आयें , यात्रा मेरी हो पर सुकून कारवां को आये |
(लेखक - धीरेन्द्र सिंह)
I appreciate your writing, I like motivational stories as you put in your article.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
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