क्या है ऐसा मैं कहूं जो तेरी वन्दना बन जाये |
जिससे है हर शब्द उसको कैसे शब्दों में बांधूं |
ऐसा क्या लिखूं जिससे तेरी स्तुति हो जाये |
ध्यान तुझसे, ज्ञान तुझसे, हर जीव की चेतना का सार तुझसे |
तू ही ग्रन्थ, तू ही काव्य, तू ही संगीत, तू ही हर साज की आवाज |
मूड़ हूँ मैं, कैसे करूँ तेरी वंदना |
सोच रहा बांधूं उसको शब्दों में, जो हर शब्द से परे है |
हे शारदे माँ तू ज्ञान की देवी, दया की मूरत |
दे मुझको भी वो वरदान, करूँ तेरा मैं गुणगान |
बिन तेरी कृपा के, कब ज्ञान की अलख जगी है |
बिन तेरी कृपा के, कब कोई तेरी स्तुति रची है |
मांग रहा तुझसे वरदान तेरी ही भक्ति का |
कर सकूँ तेरी वंदना दे मुझको वरदान |
आराधना करूँ क्या तेरी, किन शब्दों में तेरा गुणगान करूँ |
क्या है ऐसा मैं कहूं जो तेरी वन्दना बन जाये |
(लेखक - धीरेन्द्र सिंह)
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