हर तरफ कुछ हल्ला है |
हर ज़िकर में तेरा मशला है |
तू रूठ के यों बैठी है |
जैसे आकाश से चाँद रूठा हो |
कोई मनाये तो मनाये कैसे उन्हें |
वो तो सूरज बनके बैठे हैं |
हम भी मगर जिद्दी हैं |
वो रूठने में तो हम माहिर हैं मनाने में |
हर तरफ कुछ हल्ला है |
हर ज़िकर में तेरा मशला हैं |
(लेखक - धीरेन्द्र सिंह)
Lekhakji main apki likhi Kavita Se sahamat hu par pati bhi Kam nakhre baale nai hote
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