बच्चों को कभी भी नज़र अंदाज़ नहीं करें
बच्चे वही करते हैं या सीखते हैं जो अपने वातावरण में देखते हैं, बच्चे जिज्ञासा से भरे होते हैं वो कभी भी क्या सही है या क्या गलत ऐसे विचारों में नहीं फसते, वो वही करते हैं जिसमे उनको खुशी मिलती है |
बच्चों की गलतियों को या उनकी शरारतों को या उनकी ख़ामोशी को भी कभी नज़र अंदाज़ नहीं करना चाहिए -
जो माँ बाप अपने बच्चे की गलती पर उन्हें बढ़ावा देतें हैं उनको बाद में पछताना पड़ता है | कई बार माँ बाप का अँधा प्रेम बच्चे के लिए विष के समान होता है, एक छोटी से कहानी सुनाता हूँ - एक बच्चा था, बच्चा बचपन से कुषाग्र बुद्धि था, पड़ने में भी बहुत तेज था पर छोटी सी उम्र में ही बहुत महत्वकांक्षी भी था जिसके चलते जल्दी ही गलत संगत में पड़ गया, चोरी और झूठ बोलने लग गया | पहले छोटी छोटी चीजें चुराता था और घर में झूठ बोल देता के उसके दोस्त ने दिया है, घर वाले भी उस पर विश्वास कर लेते थे | कभी कोई शिक्षक शिकायत करता भी, तो माता पिता उलटे उस शिक्षक को ही कहते आप को ध्यान रखना चाहिए, हमारा बच्चा तो ऐसा कर ही नहीं सकता | ऐसे ही उसकी हिम्मत बढ़ती चली गयी और फिर तो उसका सारा जीवन ही दिशाहीन हो गया, एक अच्छा तेज बच्चा जो अपने और समाज के लिए प्रेणना बन सकता था पर सही दिशा न मिलने पर भटक गया।
(आगे पढ़े - जीवन कैसा हो )
इसलिए कहा भी गया वो माँ बाप अपने बच्चे के दुश्मन होते हैं जो उनका मार्ग दर्शन नहीं करते, उन्हें सही-गलत का फर्क नहीं बताते या उनसे खुल कर बात नहीं करते, उनके मन को नहीं टटोलते |
क्या हमे अपने बच्चों को सुधारने के लिए दंड देना चाहिए ?
दोस्तों बच्चे स्वतंत्र होते हैं कुछ भी सीखने के लिए, उन्हें नहीं पता क्या सही है क्या गलत | यह तो हम बड़ों की जिम्मेदारी है की हम उनके सामने अच्छे उदाहरण रखें जिससे वो कभी भी गलत काम ना करें | इसके लिए अपने जीवन का एक किस्सा बताता हूँ |
(आगे पढ़े - पिता को समर्पित )
मैं जब छोटा था तो मैं अपनी कक्षा में हर विषय में विफल हो गया और फिर डर गया की अब तो पिता जी की बहुत मार और डाँट पड़ेगी, जब घर पहुंचा तो पिताजी ने पूछा अपना Report कार्ड दिखाओ तब मैंने झूठ बोला की वो तो अभी मिला ही नहीं है | स्कूल में Teacher रोज़ पूछती थी की Report कार्ड लाये हो अपने parents के sign के साथ और मैं उनसे भी झूठ बोल देता था और इस तरह मैंने करीब १५ दिन निकाल दिए |
लेकिन मेरे पिताजी का एक नियम था की वो हर महीने स्कूल की प्रिंसिपल से मिलने जरूर आते थे की हमारी पढ़ाई कैसी चल रही है, मुझे आज भी वो दिन अच्छे से याद है की जब पिता जी स्कूल में आये और प्रिंसिपल उनको मेरी Class Teacher से मिलवाने के लिए उनको अपने साथ लेकर आयीं और उस समय मैं, अपने दोनों हाथ ऊपर करके सजा में खड़ा था, क्योंकि की मैंने अभी तक report कार्ड जमा नहीं किया था | पिता जी को जब पता चला और teacher ने उनसे पूछा की उन्होंने अभी तक report कार्ड sign करके क्यों नहीं भिजवाया तो उन्होंने सिर्फ इतना कहा ठीक है कल भिजवाता हूँ और चुपचाप वहां से चले गए, उन्होंने मुझसे कुछ भी नहीं कहा, मेरे दोस्तों ने मुझे बहुत डराया की आज तो तेरी बहुत मार पड़ेगी |
मैं डरते डरते घर पहुंचा, पिता जी घर पर ही थे, उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया और मुझसे पूछा की आपको Report कार्ड कब मिला था, मैंने कहा १५ दिन पहले, उन्होंने कहा ठीक है मुझे दिखाओ, उन्होंने देखकर सिर्फ इतना कहा कोई बात नहीं अगली बार हम और महेनत करेंगे और Report कार्ड पर sign भी कर दिये और कहा इसे कल स्कूल में जमा कर देना | फिर उन्होंने मुझे अपनी गोद मैं बैठाया और बड़े प्यार से मुझसे पूछा की बेटा आपने झूठ क्यों बोला और दोस्तों सही मानिये मैं उनके इस व्यवहार से अंदर तक हिल गया था और उनसे चिपक कर खूब रोया और मैंने बताया की मैं डर गया था की आप नाराज़ होंगे, मुझे मारेंगे | उन्होंने मुझे इतने प्यार से समझाया और कहा बेटा आप मुझेसे एक वादा करो की जीवन में तुम फिर मुझसे कभी कुछ नहीं छुपाओगे ना ही झूूठ बोलोगे, हम हर परेशानी का हल साथ मिलकर ढूढेंगे, उस दिन के बाद मैने उनसे कुछ भी, कभी नहीं झुपाया न ही कभी झूठ बोला, वो मेरी पढ़ाई में और ज्यादा ध्यान देने लगे और जिससे में कभी भी किसी कक्षा में विफल नहीं हुआ |
इस कहानी को बताने का मतलब सिर्फ इतना है की प्यार से बड़ा कोई दंड नहीं होता, लेकिन इसका मतलब बिलकुल भी नहीं की आप अपने बच्चों के व्यवहार के प्रति सजग न रहे, अनुशासन के लिये भय का होना भी उतना ही जरुरी है|
माता पिता बनकर बच्चों का लालनपालन करना और उनको अच्छे संस्कार देकर एक अच्छा इंसान बनाना कोई आसान काम नहीं और इसके लिए कोई भी Rule Books नहीं हैं | बच्चे अपने चारों तरफ के वातावरण से सब कुछ सीखते हैं, उनके चारों और प्यार का, विश्वास का और संस्कारों का ऐसा बांध बनायें जिसे कोई भी आराजक तत्व गिरा न पाये
(लेखक - धीरेन्द्र सिंह)
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