दर्द
कुछ भूल रहा हूं, अपने में सिमट रहा हूं ।
अपनों के दर्द से परेशान हूं, कुछ भूल रहा हूं ।।
इंसान के लालच की फितरत देखो, आज हर कोई लूट रहा है ।
क्या किसी की मजबूरी, क्या किसी का गम, यह लालच कुछ नहीं देख रहा है।।
कुछ फरिश्ते हैं सड़कों पर, जो आज भी मानवता जिंदा रखे हैं।
कुछ फरिश्ते हैं अस्पतालों में, जो आज भी लोगों को जिंदा रखे हैं।।
जो आया है उसको जाना है, पर इस कदर नहीं जाना है।
यह समय है जो है बुरा, समय ही है जो बीत जाना है ।।
गहरी है रात, अंधार का है सम्राज, सुबह का सूरज बस अब उदय होने ही वाला है ।
तुम अपनी हिम्मत को धामे रखो, यह सब जल्द ही बदलने वाला है ।।
(धीरेन्द्र सिंह)
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