जीवन में कई बार ऐसे मौके आते हैं, जब हम समझ ही नहीं पाते कि हमें क्या करना चाहिए, हम सब मानव शरीर धारण किए हुए हैं और मनुष्य गुणों से भी सुसज्जित है जैसे लोभ, क्रोध, मोह, वासना आदि, इसी कारण बस हम अपने आप को सबसे श्रेष्ठ समझते हैं और कई बार धर्म और अधर्म का फर्क भूल जाते हैं |
जब यह निश्चित हुआ कि अब तो कौरव और पांडव का युद्ध होगा ही, तो सबसे ज्यादा व्यथित अगर कोई था तो वहा थे - श्री कृष्ण, वह जानते थे कि पांडव सही होते हुए भी गलत थे और उनसे भी अधर्म हुआ था | चौंसर में अपने भाइयों और अपनी पत्नी को दांव पर लगाना और उसका मान भंग होते देखना और राजा होते हुए भी अपनी प्रजा के बारे में ना सोचते हुए अपनी सारी संपत्ति और राज्य को दांव पर लगाना, यह सब कार्य अधर्म के ही पर्यायवाची हैं और उससे भी बड़ी अधर्म की बात की एक महायुद्ध लड़ा जाना है वो भी प्रतिशोध की भावना से |
युद्ध होता तो दो राजाओं में है पर उनके साथ लड़ता उनका पूरा साम्राज्य है जिससे किसी का भी फायदा नहीं होता है |
कृष्ण जानते थे कि यह युद्ध हुआ तो सब कुछ नष्ट हो जाएगा और इस युद्ध से किसी को भी कोई लाभ नहीं होगा क्योंकि जब कोई शेष ही नहीं बचेगा तो कौन किस राज्य का आनंद लेगा | लेकिन कृष्ण जानते थे कि युद्ध अनिवार्य है पर उसकी दिशा और कारण सही नहीं है इसलिए कृष्ण अपनी बहन द्रोपती के पास गए |
कृष्ण द्रोपती से बोले, हे द्रोपती तुम यह युद्ध क्यों चाहती हो, द्रोपती एक टक टकी से कृष्ण को देखती ही रही और बोली, है माधव, हे केशव यह आपने कैसा प्रश्न किया है, क्या आप नहीं जानते कि कौरवों ने कैसा मेरा अपमान किया था, कृष्ण बोले - मेरी बहन सब जानता हूं और इसलिए यह प्रश्न कर रहा हूं कि यह युद्ध बड़ा ही विनाशक युद्ध होगा जो आज से पहले कभी नहीं हुआ है और ना आज के बाद कभी होगा और जो भी इसमें वीरगति को प्राप्त करेगा उसका उत्तरदायित्व कौन होगा | क्या युद्ध केवल प्रतिशोध की भावना से होना चाहिए, तब द्रोपती ने रोते हुए कृष्ण से पूछा तो माधव आप ही बताइए क्या मैं सब को माफ कर दूं और भूल जाऊँ जो भी मेरे साथ हुआ था |
कृष्ण बोले मेरी बहिन युद्ध तो अब अनिवार्य है परन्तु तुम्हारा उन सब को माफ करना भी जरूरी है क्योंकि ऐसा करने से तुम इस युद्ध के पाप से मुक्त हो जाओगी और तब यह युद्ध प्रतिशोध के लिए लड़ा जाने वाला युद्ध नहीं बल्कि धर्म की स्थापना के लिए लड़ा जाने वाला युद्ध बन जाएगा - जरा सोचो, तुम महाराज युधिष्ठिर की महारानी शूरवीर पत्तियों की पत्नी हो, जब तुम्हारे साथ ऐसा दुराचार हो सकता है तो समाज की आम नारी के साथ क्या होगा इसलिए फिर कहता हूं तुम सब को माफ कर दो, झमा कर दो क्योंकि इससे बड़ा पुण्य कुछ भी नहीं है |
तब द्रोपती ने कौरव समाज को माफ कर दिया इस प्रकार महाभारत का युद्ध किसी स्त्री के प्रतिशोध का नहीं बल्कि धर्म की स्थापना के लिए लड़ा गया युद्ध था |
(लेखक -धीरेन्द्र सिंह)