घर का आँगन
आज जीवन शैली बदल गयी है, लोग अपने में ज्यादा सिमट गए हैं | लोग आपस में सहज नहीं हैं जैसे की वह पहले हुआ करते थे | आज हम सब आधुनिक युग में जी रहे हैं जहाँ विज्ञान के नये-नये उपकरण हमारा काम आसान बना रहे हैं, लेकिन साथ साथ इनके उपयोग से जीवन भी जटिल होता जा रहा है | आज हम किसी पर आसानी से भरोसा नहीं कर सकते अगर चाहते भी हैं तो भी नहीं करपाते हैं | इन सबका क्या कारण है, विज्ञान की नयी उपलब्धियां तो हमारे जीवन को सुगम बनाती हैं पर जैसे कहा जाता है की किसी भी चीज का ज्यादा उपयोग नुक्सान देह होता है यह भी ऐसे ही है | आज हम अपने जीवन को बहेतर बनाने के चक्कर में अपने निजी जीवन को ही भूल चुके हैं |
इसलिए आज मुझे अपने घर का वो आँगन याद आ रहा है, मुझे अपना बचपन याद आ रहा है, वो खेल, वो साथी, वो लोग, वो बुजर्ग, वो आसमान छूने की जिद्द, वो लड़ना, रूठना, मनना और ऐसी कितनी बातें जो आज के परिवेश से बिलकुल अलग थीं |
आप कल्पना करिये उस घर की जहाँ दस से ज्यादा परिवार एक साथ रहते हों और उन परिवारों के बच्चे साथ-साथ खेलते हों, लड़ते हों, खिल खिलाकर हँसते हों, खुश होते हों | लेकिन जब इतने सारे लोग साथ रहते हैं तो आप कभी भी अकेले नहीं हो सकते हैं | सोच कर देखिये की आप उदास घर में आते हैं तभी किसी चाची ने या अम्मा ने देखा तो तुरंत प्रश्न आ जायेगा, अरे बेटा क्या हुआ मुहं क्यों लटका रखा है आप कैसे न कैसे उनके इन प्रश्नोसे बचते बचाते अपने कमरे की तरफ बड़ोगे तभी कोई और आपसे पूछ लेगा, हे भाई क्या हुआ | सच मानिये आपको बुरा भी लगेगा की कोई मुझे अकेला क्यों नहीं छोड़ देता, लेकिन इन सबने उस उदासी को दूर भी कर दिया क्यों की अब आप कुछ और ही सोचने लगते हैं जो वास्तव में बहुत जरुरी होता है | जब लोग आपसे बात करते हैं, आपके प्रति अपना स्नेह जताते हैं तब आप में एक अजीब सा उत्साह भर जाता है और आप अपनी मूल समस्या या परेशानी को भूल कर आगे बढ़ जाते हैं और उस परेशानी से निपटने के लिए आप तैयार हो जाते हैं, आप चिंता को छोड़ चिंतन करने लग जाते हैं |
आज आधुनिक जीवन शैली में हम संयुक्त परिवार के महत्व को भुला बैठे हैं | हम सब कुछ ज्यादा ही समझदार हो गए हैं लेकिन इससे हुआ क्या है ? इससे हमारी ही निजी जिंदगी का तना बाना बिगड़ गया है | हम सब तनाव के शिकार हो गए हैं जिससे जीवन में अनेको बीमारियों ने घर कर लिया है, हमारे पास कोई सच्चा मित्र, साथी नहीं है, आप जिससे भी अपनी परेशानी को बांटते हो वो ही उसका सौदा करने लगता है |
हम सब यह जानते भी हैं और मानते भी हैं और संयुक्त परिवार के महत्व को समझते भी हैं फिर भी हम सब अलग-अलग रहना पसंद करते हैं और ठीक भी है, समय बदला है परिवेश भी बदला है लोगों की सोच बदली है किन्तु इस परिस्थति में हमारी नैतिक जिम्मेदारी हमारी नयी पीढ़ी के लिए बड़ जाती है की हम उनको ऐसे संस्कार दें और उनके सामने ऐसा आचरण करें जिससे वो मानवीय मूलों को समझें और एक अच्छे और सच्चे इंसान बन सकें |
वास्तव में घर का आँगन होता क्या है ?
घर का आँगन एक ऐसा स्थान जहां सुकून हो, चित शांत हो, ऊर्जा चर्म पर हो, मुख पर मुस्कान हो और यह सब तब होता है जब हमारे अंदर सुरक्षा का भाव होता है |
यह वही जानता है, जो अपने शहर से दूर हो, जो अपने प्रदेश से दूर हो, जो देश से दूर हो की वास्तव में घर का आँगन क्या होता है |
(लेखक - धीरेन्द्र सिंह)