मैं समय की चाल को देख रहा हूँ |
उसकी रफ़्तार को भी समझ रहा हूँ, फिर भी बेचैन हूँ ||
बीते कुछ दिनों में, बदलते इस संसार में, महामारी के प्रकोप में |
जीवन के नये अस्तित्व की तलाश देख रहा हूँ ||
हर दिन की जद्दोजहत, संघर्ष है ज़िंदा रहने का |
हर दिन कोई हमसे बिछड़ रहा है, फिर भी जिंदगी की अपनी रफ़्तार है ||
कैसे कोई संभाले अपने आप को, हर तरफ तबाही का मंजर है |
कुछ लोग लगें हैं बचाने में, तो कुछ लगें हैं कमाने में ||
आज मानवता भी शर्मशार है |
किसी की तकलीफ़, किसी के जेब भरने का सबब बन गई है ||
जिसने अपने को खोया, अपनी जिंदगी दांव पर लगा कर |
फिर भी नहीं हारा है, दे रहा चुनौती जिंदगी को ||
मैं समय की चाल को देख रहा हूँ |
उसकी रफ़्तार को भी समझ रहा हूँ, फिर भी बेचैन हूँ ||
(लेखक - धीरेन्द्र सिंह )
(लेखक - धीरेन्द्र सिंह )
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