बहुत बार ऐसा होता है चलते चलते रुकने का मन होता है ।
पर रुकना मेरी फितरत नहीं बढ़ना मेरी नियति है ।
हवा का काम चलना है जीवन का ऐहसास कराना है ।
जीवन समय की धारा है बढ़ते रहना उसका अनुसरण है ।
मैं तुमसे क्या कहूँ हर जीव की अपनी कहानी है ।
तुम्हारी सोच ही तुम्हारी जिंदगी की परिचायक है ।
(लेखक - धीरेन्द्र सिंह )
Beautiful written
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