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Sunday, December 14, 2025

स्थिरता और जुनून के बीच का संघर्ष | The struggle between stability and passion

 

स्थिरता और जुनून के बीच का संघर्ष | The struggle between stability and passion


जब हम छोटे होते हैं, तब हर व्यक्ति हमसे पूछता रहता है — “बेटा, बड़े होकर क्या बनोगे?”

तब लोग हमसे हमारे सपनों के बारे में जानना चाहते हैं, और हम भी उत्साह से उन्हें बताते हैं कि हम क्या बनना चाहते हैं।

फिर एक दिन हम बड़े हो जाते हैं।
नौकरी, जीवनसाथी, बच्चे और घर की ज़िम्मेदारियाँ—सब एक-एक करके साथ आती जाती हैं।
लेकिन इनके बीच अगर कुछ खो जाता है, तो वह है हमारा सपना और उसे पूरा करने का हमारा जुनून

आज जीवन स्थिर है, सुंदर है, खुशहाल है—और क्या चाहिए ज़िंदगी में?
बाहर से सब ठीक लगता है, पर भीतर कुछ ऐसा है जो बेचैन करता रहता है।
एक प्रश्न, जो बार-बार ज़हन में आता है — “जो सपना था, क्या वह पूरा हो गया?”

ज़िंदगी बहुत तेज़ी से बीत रही है, पर ज़िम्मेदारियाँ उस पर सोचने का वक्त नहीं देतीं।
ऐसे ही दिन, महीने और साल बीत जाते हैं, और वह सवाल जस का तस बना रहता है।

यह स्थिरता हमें क्या देती है?
यह हमें और हमारे परिवार को सुरक्षा का भाव देती है।
परिवार को खुशियाँ देती है — जो जीवन का प्रथम लक्ष्य भी होता है।
किन्तु यही स्थिरता हमारे जुनून पर अंकुश भी लगा देती है।
अब हम बेफिक्री से खतरे नहीं उठा सकते, और वह सपना, वह जुनून धीरे-धीरे दम तोड़ने लगता है।

जुनून का सच?

जुनून आकर्षक नहीं होता।
इसमें सब कुछ साफ-साफ पता नहीं होता।
जो सपना देखा था, उससे कमाई होगी या नहीं — इसका भी अंदाज़ा नहीं होता।
ख़ुद पर भी संदेह होता है।

लेकिन जुनून में पागलपन होता है, नशा होता है, सच्ची खुशी होती है,
और एक अजीब-सा सुकून होता है, जो हमारे विचारों को दृढ़ रखता है।

हर दिन यह जंग वह हर व्यक्ति अपने आप से लड़ता है, जिसने कोई सपना देखा है, पर उसे टालता चला जा रहा है — कभी ज़िम्मेदारियों की वजह से, कभी किसी और वजह से।

फिर शुरू होता है ख़ुद से नफ़रत करने का, दूसरों से अपनी तुलना करने का सिलसिला, और यहीं से जन्म लेता है अवसाद — depression

जबकि वास्तव में स्थिरता और जुनून के बीच कोई युद्ध नहीं है।
असली समस्या की जड़ है — समझ की कमी, नज़रिये की कमी, और अपने सपने पर विश्वास की कमी।

हम स्थिरता को अपना दुश्मन समझते हैं, जबकि यदि हम उसे एक सहायक के रूप में स्वीकार करें, तो वही स्थिरता हमें वह सपना जीने का अवसर दे सकती है, जो हमने देखा था।

यदि आपका सपना सच्चा है, तो आप उसे पाने के लिए एक अच्छी रणनीति बनाएँगे, स्थिरता का उपयोग उसके लिए करेंगे,
और पूरे जुनून के साथ आगे बढ़ेंगे।

अपने आप से कुछ सवाल ज़रूर पूछिए —

  1. मैं वास्तव में क्या करना चाहता हूँ?

  2. क्या मेरा सपना मेरी ज़िंदगी का हिस्सा है?

  3. उसे पाने के लिए मैं क्या दाँव पर लगा सकता हूँ?

हम सब ज़िंदगी की दौड़ में बस थक गए हैं और थोड़े-से उलझ गए हैं। अपने आप को थोड़ा समय दीजिए।

पूरी निष्ठा के साथ अपने लक्ष्य का चुनाव कीजिए, उसके लिए सबसे अच्छी रणनीति बनाइए और फिर पूरे मन से उसमें खुद को झोंक दीजिए।

— धीरेन्द्र सिंह


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Monday, December 8, 2025

प्रेम की सुंदरता: जहाँ पीड़ा में भी आनंद है | The Beautiful pain of love

प्रेम की सुंदरता: जहाँ पीड़ा में भी आनंद है | The Beautiful pain of love


तुम मुझसे रूठ जाओ, तो कोई बात नहीं,

पर तुम्हें मनाने का हक मुझसे मत छीनना।


तुम दूर सही, पर अगर खुश हो,

बस यही बात मंज़ूर है मुझको।


तेरी याद सताती है, पर कहने की हिम्मत नहीं होती,

तेरी तस्वीर देखकर यादों में ही खोजना पड़ता है तुझको।


यह तो मैं और तुम हैं…

कौन कल्पना कर सकता है इस विरह-पीड़ा की,

राधा–कृष्ण के प्रेम की।


कौन जाने पीड़ा मीरा बाई की,

कौन जाने पीड़ा मेरे कृष्ण की।

प्रेम की यही तो सुंदरता है

जिसमें पीड़ा में भी आनंद है, तड़प है,

मिलने की आस है।


तुम मुझसे रूठ जाओ, तो भी कोई बात नहीं,

पर तुम्हें मनाने का हक मुझसे मत छीनना।           

               

                                            (धीरेन्द्र सिंह)



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Sunday, December 7, 2025

अकेलापन अच्छी बात है या तन्हाई का खतरा? | Loneliness vs Solitude Explained

अकेलापन अच्छी बात है या तन्हाई का खतरा?

अकेलापन — यह हमारी पसंद है या मजबूरी?

यह बात हर व्यक्ति के अपने अनुभव, परिस्थितियों और मन की जरूरतों पर निर्भर करती है।

जन्म से लेकर पूरी जिंदगी हम लोगों, रिश्तों और समाज के बीच रहते हैं। इसलिए जब कोई कहता है, “मुझे अकेले रहना पसंद है,” तो अक्सर वह सच्चा अकेलापन नहीं होता…

वह तन्हाई होती है — एक ऐसा मौहाल जहाँ सिर्फ हम होते हैं, चार दीवारी होती है और भीतर का खालीपन।

अकेलेपन का असली अर्थ लोग अक्सर गलत समझ लेते हैं। उन्हें लगता है कि सब से कट जाना, रिश्तों से दूर हो जाना या खुद को दुनिया से अलग कर लेना ही अकेलापन है।

लेकिन सच में अकेलापन एकांत है — स्वयं से मिलने का समय, खुद को पहचानने का अवसर।

इसी तरह का एकांत गौतम बुद्ध ने जिया, स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस ने जिया।

हर वह व्यक्ति जिसने दुनिया को दिशा दी, वह पहले स्वयं के भीतर उतरा।

इसलिए अकेले रहना बुरा नहीं, अगर आप इसका उपयोग:

अपने लक्ष्य को पाने,

अपने विचार साफ करने,

अपनी ऊर्जा वापस पाने,

और स्वयं से मिलने के लिए करते हैं, तो अकेलापन आपका सबसे बड़ा सहारा बन सकता है।

लेकिन यही अकेलापन अगर तन्हाई बन जाए, अगर आप दुनिया से कटने लगें, अगर बोलने-सुनने का मन ना करे, तो यह धीरे-धीरे मन को थका देता है।

आख़िर में, जीवन का असली अर्थ एक-दूसरे का साथ निभाने में ही है।

हम सामाजिक प्राणी हैं; हमें भावनात्मक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए साथ, संवाद और जुड़ाव की ज़रूरत होती है।

एकांत अपनाइए — तन्हाई नहीं।

क्योंकि एकांत आपको खुद से जोड़ता है,

और तन्हाई खुद से दूर कर देती है।

                                                            (धीरेन्द्र सिंह)


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