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Friday, March 24, 2023

कृष्ण भावना से जीना

 


मुझको लगा की तुम असाध्य हो ।

पर तुम तो मेरी चेतना का सार हो ।।


मुझको लगा तुम भौतिक हो ।

पर तुम तो अविनाशी हो ।।


मुझको लगा की तुम सिर्फ मेरे हो ।

पर तुम तो हर जीव के हो ।।


मन भटका, भटकी मेरी चेतना । 

तुम अराध्य मेरे, मैं तेरी रचना ।।


तुम ही लिखते, तुम ही मिटाते ।

सारा जीवन खेल हो रचाते ।।


फसा माया में, जीव से तुम क्या क्या खेल नही कराते ।

खूब रुलाते, खूब हसाते, फिर इससे तुम्ही बचाते ।।


हम सब बंधे कर्मों से या कर्म हम से बंधे हैं ।

करता कराता तू है हम तो व्यर्थ ही उलझन में हैं ।।


मुझको लगा की तुम असाध्य हो ।

पर तुम तो मेरी चेतना का सार हो ।।


                                                (लेखक - धीरेन्द्र सिंह)

Friday, March 17, 2023

उद्देश के साथ जीवन जीना

 

एक दिन आएगा जब सब यहीं धरा रह जायेगा


समय बीत रहा है

समय बीत गया

बीत जायेगा आने वाला कल

तू है फसा जीवन की माया में, राग द्वेष में 

जीवन कट रहा है, बीत रहा है

पड़ा होगा एक दिन अपनी मौत की शैय्या पर

करेगा विचार, क्या पाया, क्या खोया, जीवन यूहीं गवाया


एक दिन आएगा जब सब यहीं धरा रह जायेगा......


हर पल जीवन का महत्पूर्ण है

ईश्वर की कृपा के अधीन है

जीवन बहुत छोटा है अगर दिशा हीन है

निरंतर अपने पे काम करना 

सीखना सदुपयोग ऊर्जा का

इस जीवन का मात्र एक उद्देश है


एक दिन आएगा जब सब यहीं धरा रह जायेगा......


उस पल के आने से पहले

पूछ कुछ प्रश्न अपने आप से

क्या जी लिया तूने अपने सपनो को?

क्या ले लिया सब अनुभव जो लेना था?

क्या कहीं कुछ पछतावा तो नही?

क्या कहीं कुछ ऐसा तो नहीं जो सीखना रहे गया?

क्या कुछ ऐसा तो नहीं जो छोड़ना था वो छूटा ही नही?


एक दिन आएगा जब सब यहीं धरा रह जायेगा......



                                                   (धीरेंद्र सिंह)









Saturday, March 4, 2023

जिंदगी के पल

 



पल के इंतजार में

पल के खुमार में

पल भर की जिदंगी के बीत ते हर पल में

सपनो की सुनहरी बहार में

नींद में, जागने में, खोने में, पाने में

कुछ है तो भी

कुछ नही है तो भी

जिंदगी की अपनी ही राह में

चलने में, दौड़ने में

मंजिल को पाने में, खोने में

खुशी में, गम में

अपनो में, परायों में

और न जाने कितनो की परछाइयों में

भूल गए हैं खुद को 

उस ईश्वर की दी हुई मुस्कराहट को

हस ले, हस ले जिंदगी

देख तुझको कुछ और भी हस लेंगे

जीना सीख लेंगे

हां जीना सीख लेंगे।


                                               (धीरेन्द्र सिंह)